“काव्यधारा” का आयोजन गाजियाबाद में किया गया

काव्यधारा

‘काव्यधारा’ का आयोजन : लालित्य ललित ने कहा देश-दुनिया में अदब की रौशनी फैला रही है ‘बारादरी’

गाजियाबाद : ‘बारादरी’ द्वारा आयोजित ‘काव्य धारा’ को संबोधित करते हुए प्रख्यात लेखक, कवि, व्यंग्यकार और नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया के संपादक लालित्य ललित ने कहा कि उद्योग नगरी के इस ‘काव्य कुटुंब’ ने देश ही नहीं विदेश में भी अपनी विशिष्ट पहचान बना ली है। उन्होंने कहा कि ‘बारादरी’ के आयोजन इस बात के प्रमाण हैं कि साहित्य की गरिमा और उत्कृष्टता को अक्षुण रखने का काम यहां सलीके से हो रहा है। ऐसे प्रयासों से ही भविष्य के रचनाकार गढ़े जाते हैं।

सहज माध्यम बना बारादरी
कार्यक्रम के अध्यक्ष सुरेंद्र सिंघल ने कहा कि बारादरी का उत्तरोत्तर उत्थान इस बात का प्रमाण है कि यह मंच आपके कृतित्व को जन सामान्य तक ले जाने का सहज माध्यम बन गया है। उन्होंने हाल ही में प्रकाशित गोविंदा गुलशन, डॉ. माला कपूर ‘गौहर’, आलोक यात्री व उर्वशी अग्रवाल ‘उर्वी’ की पुस्तकों पर भी अपने विचार प्रकट किए।

‘आज कुछ कुछ मुझमें झांकने लगे हैं पिताजी…
सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल की नेहरू नगर शाखा में ‘कथा रंग’ की ओर से प्रायोजित ‘बारादरी काव्य धारा’ में कार्यक्रम के मुख्य अतिथि लालित्य ललित की इन मार्मिक पंक्तियों ‘आज कुछ कुछ मुझमें झांकने लगे हैं पिताजी, आज आदमकद शीशे ने जब मुझसे चुगली की तो पाया कि वह कहना चाहता है कि अब कुछ कुछ मुझ में झांकने लगे हैं पिताजी, आंखों के पास से, कानों के पास से कालमों में दिखने लगी है चांदनी’ पर भरपूर दाद बटोरी।

…ले चल मुझे उधर तू जिस ओर जिंदगी हो
सुरेन्द्र सिंघल के यह शेर ‘उन्नीसवीं सदी या बीसवीं सदी हो, ले चल मुझे उधर तू जिस ओर जिंदगी हो। मेरा भी देश है यह, मेरा भी घर हो इसमें, घर में हो एक चूल्हा, चूल्हे में आग भी हो। रूमाल नाक पर रख, कब तक बचेगा कोई, बदबू अगर सभी की सोचों से उठ रही हो। यह सोच क्यों नहीं चूल्हा जल तेरे घर में, ना टाल बात को, कहकर नहीं मुकद्दर में’ भरपूर साराहे गए।

‘आवाज कैसे देता बुलाता मैं किस तरह…
संस्था के अध्यक्ष गोविंद गुलशन की पंक्तियों ‘आवाज कैसे देता बुलाता मैं किस तरह, वह भी तो धीमी चाल से बाहर नहीं गया’ और मासूम गाजियाबादी की पंक्तियों ‘सुनो एक सीप के दो हिस्से हैं मां-बाप, जो इनको अलग कर दें तो कोई बूंद मोती बन नहीं सकती’ भी भरपूर सराही गईं। डॉ. माला कपूर ‘गौहर’ के अशआर “लब पे हर्फ ए दुआ नहीं होगा, तय है तू भी ख़ुदा नहीं होगा। पूछना मत मेरा पता उससे, उसको अपना पता नहीं होगा” भी सराही गई।

कहा ‘अंतिम पग वीर बना वह फौजी….
कनाडा से आईं कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि प्राची रंधावा ने 1971 के भारत पाक युद्ध में एक वीर सैनिक के शौर्य को चित्रित करते हुए कहा ‘अंतिम पग वीर बना वह फौजी, वह मातृ भूमि का मतवाला लहराया युद्ध का परचम जब, फूटी मन में जोश की ज्वाला, मैं भी दुश्मन को मारूंगा, कह अग्निपथ के वह द्वार चला, हट से, तप से, बाल से, मत से हर परीक्षा कर वो पार चला, जैसे बरसे मरुधर पर बादल, मन में फिर यूं उल्लास हुआ, दुश्मन भी ना छू पाए, जिस मिट्टी को, खेवन वो पार हुआ।’

‘हंसती मुस्कुराती रहती हैं दुनियादारी में स्त्रियां…
उर्वशी अग्रवाल ‘उर्वी’ ने कहा ‘हंसती मुस्कुराती रहती हैं दुनियादारी में स्त्रियां, वनवास भोगती रहती हैं चारदीवारी में स्त्रियां’। ‘जिनसे बांधे थे दिल वो डोरियां जल गईं, हिज़्र की आग में चिट्ठियां जल गईं, मैं दीए को बचाऊं भला किस तरह, इस कश्मकश में मेरी अंगुलियां जल गईं’।

डॉ. ईश्वर सिंह तेवतिया के गीत ‘आईसीयू’ की इन मार्मिक पंक्तियों ‘खुदा आईसीयू में तुमको कभी न भेजे यही दुआ है, लेकिन कड़़वे सच का अनुभव उसी जगह पर मुझे हुआ है, जब विदाई की बेला आकर खड़ी सामने हो जाती है, जब बेबस हमदर्दी ही बस चारों ओर नजर आती है, तब जी लेने की इच्‍छा को खुद पर कभी घटा कर देखो, जीवन की क्षण भंगुरता को खुद पर कभी घटा कर देखो’ ने सभी को भाव विह्वल कर दिया।

मंजू ‘मन’ ने अपनी क्षणिकाओं ‘दुःख सवार रहता है, सदैव सुख की पीठ पर, इसलिए अकेला नहीं होता’, ‘सुख के पांव नहीं होते, इसलिए वह कर नहीं पाता, लंबी यात्रा’ से श्रोताओं का मन मोह लिया। मीना पांडेय ने व्यभिचार को रेखांकित करते हुए कहा ‘पर्वत नदियां झरने वादी, सारा आलम मौन है, एक हिरनी ने दम तोड़ा है उसका कातिल कौन है, जिस गुलशन में पली बड़ी जिसने उसको सींचा था, पूछ रही आधी आबादी असली अपराधी कौन है?’

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मासूम गाजियाबादी बारादरी विभूषण सम्मान सम्मानित

“काव्यधारा” कार्यक्रम का शुभारंभ आशीष मित्तल की सरस्वती वंदना से हुआ। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध शायर मासूम गाजियाबादी को जीवन पर्यंत साहित्य सेवा के लिए बारादरी विभूषण सम्मान से अलंकृत किया गया। कार्यक्रम का संचालन असलम राशिद ने किया। उनके शेर ‘थकना नहीं ए जिस्म उदासी के बोझ से, मरती नहीं है मछलियां पानी के बोझ से। इक बीज था मैं आज क़द-आवर दरख़्त हूं, मुझको मिली है ज़िन्दगी मिट्टी के बोझ से’ सहित बी. के. वर्मा ‘शैदी’, प्रदीप भट्ट, सुभाष अखिल, अनिमेष शर्मा, इंद्रजीत सुकुमार, सुरेन्द्र शर्मा, वागीश शर्मा, डॉ. उपासना दीक्षित, अनिल शर्मा, प्रवीण त्रिपाठी, संजीव निगम ‘अनाम’, तूलिका सेठ, अंजू सुमन साधक, आशीष मित्तल, मृत्युंजय साधक, संजीव ‘नादान” व शुभ्रा पालीवाल की रचनाएं भी सराही गईं।

“काव्यधारा” के इस अवसर पर सुभाष चंदर, शिवराज सिंह, आलोक यात्री, अवधेश श्रीवास्तव, डॉ. बीना शर्मा, सुशील कुमार शर्मा, कुलदीप, डॉ. राजीव पांडेय, अर्चना शर्मा, उत्कर्ष गर्ग, डॉ. जय प्रकाश मिश्र, वीरेन्द्र सिंह राठौर, सरिता चतुर्वेदी, रविकांत दीक्षित, के. के. जायसवाल, दीपा गर्ग, नीटू जैन, टेकचंद, नितान्या अरोड़ा, खुश्बू, अंजलि, सिमरन व मनोज कुमार सहित बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद थे।

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